
"राजनीति में आलोचना से बचना संभव नहीं, पर जनता बार-बार उसी को चुनती है जो उसे स्थायित्व देता है, सिर्फ वादे नहीं।"
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AUTHOR Rajeev Pandey ✍️ |
— अज्ञात
बिहार की राजनीति आज भी नीतीश कुमार के इर्द-गिर्द घूमती है।
25 वर्षों में चाहे जितने चुनाव हुए हों, सत्ता में चाहे विपक्ष रहा हो या सहयोगी, असली मुकाबला हमेशा एक ही सवाल पर टिकता रहा — नीतीश बनाम बाकी सब। चाहे वो लालू प्रसाद यादव हों, तेजस्वी हों, या फिर बीजेपी, कांग्रेस, वाम दल — सभी का लक्ष्य यही रहता है कि नीतीश को कैसे हटाएं या उनके बिना राजनीति कैसे गढ़ें।
और यही नीतीश कुमार की सबसे बड़ी राजनीतिक जीत भी है।
बिहार के वर्तमान राजनीतिक परिदृश्य को देखें तो मुख्यमंत्री पद के लिए कोई ऐसा नाम आज भी सामने नहीं आता जो अनुभव, जनसंपर्क, प्रशासनिक पकड़, और जातिगत संतुलन के स्तर पर नीतीश कुमार के समकक्ष हो।
हाँ, आलोचना होती है। बहुत होती है।
कभी शिक्षा व्यवस्था को लेकर,
कभी बेरोजगारी,
तो कभी "पलायन" को लेकर।
लेकिन जनता हर बार यही सोचती है — "इसके बाद कौन?"
आज बिहार की राजनीति एक विचित्र स्थिति में है।
राजनीतिक दलों के नेताओं की प्राथमिकता अब भी मुद्दों से ज़्यादा जातियों को साधने पर है। बयानबाज़ी की भाषा नीच स्तर पर पहुँच चुकी है, जहाँ सार्वजनिक मंचों से जातिगत अपशब्द तक आम हो चुके हैं। इस ज़हर से युवाओं का भी बचना मुश्किल हो गया है। जो युवा नेता संभावित विकल्प हो सकते थे, वे या तो मीडिया की चकाचौंध से दूर हैं या फिर जातीय पहचान के छोटे दायरे में सीमित हो गए हैं।
नीतीश कुमार की आलोचना करते हुए भी लोग ये मानते हैं कि
सड़क हो, बिजली हो, या गांव-गांव तक सरकारी योजनाओं की पहुँच,
महिलाओं को आरक्षण देकर पंचायतों में भागीदारी देना हो,
या फिर प्रशासनिक मशीनरी की जवाबदेही तय करना,
इन सारे क्षेत्रों में उन्होंने एक बुनियादी ढांचा खड़ा किया है।
हो सकता है कि अब उनकी ऊर्जा पहले जैसी न हो, या गठबंधनों के दबाव से उनकी नीतियाँ कमजोर हो रही हों, लेकिन आम जनता को अब भी लगता है कि अगर विकल्प वही पुराने चेहरे हैं, तो नीतीश ही बेहतर हैं।
आगामी चुनाव में मुझे भी यही लगता है कि चाहे राजनीतिक समीकरण कुछ भी हों, जनता फिर से नीतीश कुमार को मुख्यमंत्री के रूप में स्वीकार करेगी।
हो सकता है दो साल बाद कोई नया चेहरा उन्हें रिप्लेस करे, पर 2025 के चुनावों में वही चेहरा फिर से दिखेगा जिसे बिहार पिछले दो दशकों से जानता है।
अगर आप पूछें कि नीतीश कुमार की जगह कौन ले सकता है — तो जवाब यही है: फिलहाल कोई नहीं।
क्योंकि राजनीति सिर्फ भीड़ जुटाने का नाम नहीं है,
बल्कि प्रशासन चलाने, संतुलन बनाने, और समाज के हर वर्ग को भरोसे में लेने की समझ भी चाहिए।
और ये अनुभव, फिलहाल, सिर्फ एक ही शख्स के पास है — नीतीश कुमार।
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